Saturday 13 January 2024

मैं कौन





"मैं कौन "

मैं कौन हूं, ढूंढने मैं चली थी
पाने से ज्यादा , खुद को खोने, मैं चली थी।।
लंबी सफर थी , जरा ध्यान से तुम सुनना, 
क्या पता तुम भी खुद को
हमराही जानो ।
मैं कौन हूं, ढूंढने में चली थी
पाने से ज्यादा , खुद को खोने में चली थी।।

मैं खुद को चमकते 
सूरज सी जानू
हवाओं के वेग से
ताल मिला लूं
उफानी नदी की 
रवानी में जानू
मैं बेखौफ आग की
ऊष्मा को सहेजूं

मैं ये चाहु, मैं वो भी चाहूं
इच्छा को मैं अपना हथियार जानू
जो मेरी गति से तू कदम मिलाये
तूफानी समंदर में नैया फसाए।
आसमान से ऊंची
उड़ान है ये मेरी
बिजली सी तपती
क्षण में ही जलाती ।

अहंकार के दरिया में
मैं हिचकोले लेती
गुरुर पे अपने यूं इतराती
मुझ में मेरा " मैं" बड़ा था
न जाना " दृष्टि" इतनी छोटी थी
बंद आंखों की छोटी समझ में,
मैं ने खुद को "विराट" जाना

***
फिर दिन बदले, उजाले ने आके
मेरा द्वार खटखटाया
जागी में जिस दिन
खुद को अबोध पाया
सतह से परे मन की आंखों से देखा,
सच का नया रूप सामने आया
जाना जब शिवा के 
ब्रह्मांड को मैंने
खुद को अंतरिक्ष की धूल सा पाया ।

सदियों का भार पलभर में पिघला
बिना अहम के अनायास ही
जाना 
पतझड़ में सूखे पत्ते सी मैं थी 
बारिश में गिरती, जल की
नन्ही सी बूंद मैं थी
महादेव के विराट रूप में
अंश मात्र मैं थी ।


भोर की औंस हो या
रातों की गहराई
फूलों की खुशबू हो या 
पेड़ों की छाया
सूरज की धूप हो या
जल की मिठास
हर धड़कते दिल में सिर्फ 
मेरे शिवा हैं 
ना खुद को शक्ति से जुदा
मैंने जाना 

कर्ता मैं थी, इच्छा तब भी तेरी थी
सिर्फ निमित मैं थी
सता हमेशा से तेरी ही थी
कल भी तू था, आज भी तू है
मैं कौन हूं जानने की अब जरूरत नहीं है
तू ही शिवा, बस अब चहुं ओर है।।

मैं कौन हूं, ढूंढने मैं चली थी
पाने से ज्यादा , खुद को खोने मैं चली थी।।


खास नहीं आम बनना है


खास नहीं आम बनना है

बचपन का सपना था
परवरिश या जिद्द थी
कुछ करके दिखाना
कुछ बनके दिखाना
कुछ खास बन ना
भीड़ में खो न जाना

यहां आ गई, अभी बहुत दूर जाना
ये ओहदा, ये इज्जत
ये रुतबा ये शहोरत 
बस बढ़ाते जाना
कुछ विशेष बनना
प्रसिद्धि का प्रयास करना


उम्र यूं ही ढल गई
ये मुकाबला न बदला 
कुछ ख़ास बन ने का
व्याख्यान हर दिन बदला ।

थोड़ा रुकी मैं
एकबार फिर से तलाशा
पलट के देखा मैंने 
क्या खोया क्या पाया

सोचा क्यों न reverse gear लगाऊं,
ख़ास से "आम" बनने का सफर भी देख आऊं ।

बस फिर तो क्या था
गुरुत्व तो जैसे एक पल में उतरा
हर दिन जीने का 
गणित  जैसे कि बदला

बेफिक्र मस्ती
अहम का ना महत्व
वो क्या सोचे
मैं क्या सोचूं
इज्जत के ये अलग मापदंड
ना मेरी जिम्मेदारी
पंछी सी उड़ान 
न कोई जल्दबाजी
छोटी सी खुशियां
रूबरू हो गई थी
जब से मैं "सुगम" हो गई थी।

संवाद में निच्छलता
पहनावे का न आडंबर
ना तुम्हे कोई दिखाए
न तुम्हे कुछ दिखाना
ना कोई  प्रतियोगी
ना किसी मेडल की चाहत
कमाई में ही अब संतुष्टि हो गई थी
जब से मैं बस "निर्विशेष" हो गई थी।

दिल से जुड़े रिश्ते
हर किसी का आदर
न कोई ज्यादा
न कोई कम
बस बाहें फैलाए
सब का ही सत्कार
बनी उस पेड़ जैसी
जो झुकता फल के साथ
प्रसन्नता से मैं रूबरू हो गई थी
जब से मैं " एकरूप" हो गई थी।

सुबह की वो धूप
शाम का ये  ढलना
बारिश की ये बौछारें
बैकयार्ड में हर जीव का यूं पलना,
तेरा मुस्कराना
दिल से हाथ मिलाना
हर सांस का आना
मुझे प्रकाशित करके यूं जाना
हर पल मैं अनुग्रहित हो गई थी
जब से मैं "खास"से "आम" हो गई थी।

Thanks
Shalu Makhija
Dt Feb 3, 2023